Monday 13 February 2017

फूलों की महक में लिपटे जज्बात

मैं अक्सर तुम्हें याद करती हूं जैसे कोई भी प्रेमिका करती है याद। तुम उतने ही सुंदर लगते हो जितने लगा करते थे। तुम्हें याद करते हुए मैं बहुत कुछ सहेज रही होती हूं,वे फूल जिसमें छिपे हैं तुम्हारे जज्बात, जिंदगी के वे हसीन पल, हमारा प्रेम और ना जाने क्या-क्या।

जब मैं घर गई थी और तोड़ लाई थी एक बुरांस, एक गुच्छा फ्यूंली भी। बुरांश के साथ ले आई थी एक हिस्सा पहाड़ी छांव और फ्यूंली में तो मिट्टी ही थी हमारे ही प्रेम की। फ्यूंली में लिपटे हुए मैं तुम्हें प्रेम करती हूं। पहाड़ों की मिट्टी में लिपटा प्रेम। एक प्रेम कथा हमेशा लौट आती है जिंदगी की ओर। उफ्फ तुम्हारा होना कितना कुछ होना है। और तुम्हारा न होना क्या है कैसे कहूं? मैं देखती हूं खेतों से बहता हुआ पानी और मुझे तुम्हारी एक कविता याद आती है। याद आता है एक सपना।


मेरी किताबों के बीच के पन्नों में तुम्हारे गुलदाउदी के फूल अब भी हैं। अब भी डाकिए के हाथ याद आई चिट्ठी और उस चिट्ठी में भेजी गई तुम्हारी मुक्ति बोध की कविता याद है। पर उससे अधिक याद है तुम्हारी कविता। जिसके एक पन्ने बाद ही मैंने फिर उसी किताब में बुरांस रख लिए हैं। और फ्यूंलियों से नन्हीं कलियां फूट रही हैं। तुम जानते हो ना ये तुम्हारी सांसे हैं।

यह क्या अब बुरांस सूखने से लगे हैं। मैं जानती हूं प्रियतम ये हमारा प्रेम है जो सूखता हुआ लग रहा है, पर क्या ये मुमकिन है। नहीं न उन्हीं में से बहुत कुछ रिस रहा है। उसका लाल रंग दिशाओं की लाली बन गया है। तभी तो चलती बस में बांज के पौधे चलने लगते हैं साथ-साथ और उस साथ में मुझे लोधी गार्डन के फूल भी याद आते हैं और याद आते हैं ठेठ टिशू के फूल भी, दूर तक अपनी मिट्टी के लपेटे हुए।

कहते हैं कि फूल खत्म हो हो रहे हैं, मेरे हिस्से के ऐसा तो नहीं है ना। तुम जानते हो ना कि ये फूल एक दिन मेरे हिस्से की जिंदगी को डुबोकर रहेंगे या कर देंगे आबाद। मुझे खूब याद आता है वसंत और उस वसंत का मौसम जहां अनजाने ही कुछ महसूस करने को दिल करता है। याद आता है एक सपना। यही ये फूल हैं जो मुझे डूबने नहीं देंगे। हर बार मैं उठ खड़ी होऊंगी अंजुली भर प्रेम लेकर और तुम भी उठ खड़े हो आओगे फिर से मेरे स्वागत में, ठीक अपनी हथेलियों में इन्हीं फूलों को भरकर। मैं देखना चाहती हूं पलाश भरे तुम्हारे जंगलों को। मैं जानती हूं, जब तक तुम हो, जब तक तुम्हारे दिए हुए जंगल है और उन जंगलों में आग है, प्यास है, मैं तब तक हूं। और मैं हमेशा ये भी सोचती हूं कि ये हमेशा रहें वैसे ही जैसे मेरे लिए तुम्हारी बाहें, तुम्हारी फैलाई हथेलियां और उन हथेलियों में भरा हुआ प्यार भरा जंगल।

पता है मैंने प्रेम किया है उसके सपनों को और उन सपनों से लौटता है मेरा प्यार है। हर फूल के गुजरने से मुझे प्रेम का एहसास होता है। दरअसल इनमें ताकत ही ऐसी है कि इनकी खुद की एक दुनिया है। उस दुनिया को न तुम छोड़ सकतो हो, न ही मैं छोड़ सकती हूं। ये दुनिया तुम से है और तुम उन्हीं अनगिनत फूलों में से एक हो। तुम्हें मैंने चुना नहीं मैंने तुम्हे महसूस किया है। तुम खिले हो मेरे भीतर। तुम जब भी याद आते हो तो मुझे बार-बार वही गुलदाउदी याद आता है।

मुझे तुम याद करते होगे, तो तुम्हे याद आता होगा ऊंचे डांडों में खिला एक सुर्ख बुरांस। हमने एक लंबा समय कहीं साथ गुजारने की बात कही थी, एक ऊंची पहाड़ी पर। और उसके नीचे बहती हुई लंबी नदी में। मुझे याद आता है एक सपना, हवा में उड़ती मेरी बांहें दोनों ओर बहता पानी और उसके किनारे एक महकती घाटी उन घाटियों से उड़ती फूलों की खुशबू। तुम्हारे हाथों बने एक रेखाचित्र में मेरी वही छवि। मैं वही रेखाचित्र हो गई हूं।

मैं करती हूं एक चांद का इंतजार और तुम्हें वो पसंद नहीं। मैं कहती हूं, ठीक है आओ न इस नदी में भी चांद है। तुम ये नहीं जानते ये फूल और ये नदियां, ये पहाड़ हमेशा उठ खड़े होने की हिम्मत रखते हैं। ये जंगल सूने नहीं होते बल्कि ये शांत होते हैं और उस शांति में एक गीत है। उन गीतों का साथ देते हैं अनगिनत पक्षी। देखो न मेरी घुघूती हिलांस इन्हीं की संगत को बढाती हैं। घुघूती जानती हैं उन्हें कब चहकना है। जानती हैं ये नदियां, कब अपने वेग में आना है।

दरअसल ये फूल टूटते नहीं बिखरते नहीं बल्कि बहुत कुछ चुनते हैं अपने लिए। वो चल देते हैं अपने काम पर फिर लौटते हैं एक नई ऊर्जा के साथ। एक नए सम्मान के साथ वो अपनी याद दिलाते हैं सपनों का वो फूल फिर आता है याद।

मैं महकती हूं। मैं जानती हूं, जहां जंगल नहीं वहां भी उग सकते हैं फूल। फूलों पर कितनी कविताएं याद आती हैं, खूब याद आते हैं लोकगीत और उन गीतों में छुपी हुई प्रेमकथाएं। मैं सोच रही हूं फ्यूली तुम अपने प्रेम में कितनी जिंदा हो अभी भी। देखो न मैं भी यहीं सोच रही हूं ऐसे ही तो मैं भी जिंदा हूं।

जिंदा होना क्या प्रेम होना है। प्रेम के मौसम में मैं फिर जिंदा हो उठूंगी। तुम जब भूल चुके होगे। तुम्हारे आंगन की देहरी पर भी जाग उठेगा एक फूल और उस फूल का नाम तुम ही रखना। एक सुंदर सा नाम। जिसके नाम से एक प्रेमकथा फिर से हो उठे साकार। नहीं, नहीं मैं कहीं जाना नहीं चाहती। मैं एक फूल बनकर जीना चाहती हूं तुम्हारे ही बीच। उन तमाम बाधाओं को पार करके। जहां दो अलग अलग समाज नहीं होंगे। जहां बस दो फूल होंगे। उतने ही प्यारे, जितने प्यार की किसी को जरूरत होती है जिंदा रहने भर, इस दुनिया में ताजी हवा और खुशबू को बरकरार रखने के लिए।


नरेश  गौतम
जिंदा ही तो रहना है न, तो क्या बुरा है। साथ-साथ रहेंगे। दो नदी, दो पहाड़ों दो फूलों के बीच में ही होंगे हम कहीं। महकते फूल खूब उड़े हैं तुम्हारे बिना। एक खुशबू तुम्हारे बिना उतनी ही खाली है। देखो न, तुम भी बदल गए, लेकिन इन फूलों ने बोलना-बतियाना अभी नहीं छोड़ा है। ये आज भी करते हैं खूब गुफ्तगू।

तुम्हारी देहरी सूखी हुई है न? देखो उस पर चैत ने वसंत उड़ेल कर रख दिया है। रंग बिरंगा हो गया है तुम्हारा घर आंगन। क्या मुझे अब भी फिर से भीतर आने की इजाजत नहीं। एक बार आने दो, आने वाले हर चैत तुम्हारे पूरे घर में फ्यूंलड़ी मनाऊंगी और उस घर को मुक्त कर दूंगी घर के एहसास से। वो हमारा एक जंगल होगा एक बड़ा सा झरना बहेगा वहां। उस पहाड़ी झरने की शीतलता की तुम्हें भी तो खूब जरूरत होगी? उस घर का विस्तार हम पूरी दुनिया तक कर देंगे। उस पूरी दुनिया में सिर्फ हम नहीं होंगे।


जानती हूं इस दुनिया में सिर्फ फूल नहीं होते। और भी होता है बहुत कुछ। उस बहुत कुछ में शामिल है भीषण गर्मी और आग उगलता सूरत का एक गोला। पर क्या फूलों की जरूरत तब भी होती, जब ये गोला ना होता। ये तपती दुनिया इतना बेचैन न करती। और बहुत कुछ चलता चला जाता बहुत ही आसानी से। मैं जानती हूं सब कुछ है और ओढ लेती हूं फूलों की चादर मैं। मैं इससे मुंह नहीं चुराती। मैं आती हूं तुम्हारी दुनिया को ढकने इनसे। लड़ाइयां हमेशा हथियारों की नहीं होती। लोहा सुरक्षा नहीं देता बल्कि वार करता है। उस फूल को मैं उस लोहे में उगा लेना चाहती हूं पर क्यों पता नहीं। शायद डर है इसका एक फूल का। उस फूल भरे सपने में मैं चाहती हूं एक बेहतर दुनिया।


उस बेहतर दुनिया में इनकी जरूरत है और तुम्हारी भी। उस प्रेम भरे सपने में तुम लौट आना बिल्कुल करीब और सोचना वह बहुत कुछ जो छूटकर चला जाएगा। पर मेरा एक सपना है। एक दुनिया है जहां बहुत कुछ जिंदा रखा है सांस लेते फूलों में। इन फूलों में कितना कुछ देखा है। कितना कुछ देखा है उन आंखों में भी, इन्हीं फूलों से गुजरता वह सपना। सपने को लांघती आंखें जब भी विस्तार पाएंगी। तो मुझे पक्का यकीन है उन सपनों से इसकी खुशबू कभी जाएगी नहीं।



उन सपनों को भी आखिरकर एक अस्तित्व पाना है। उसके लिए क्या ये जरूरी नहीं कि तुम तुम हौले से एक फूल पकड़ लेना हाथों में उसकी टहनियों, जड़ों, पत्तों और मिट्टी सहित। धीरे-धीरे एक दुनिया बनने लगेगी फिर से उस खत्म होती दुनिया में। फूलों के लिए कहा जाता है शरमाते हैं लड़कियों की तरह। नहीं, वे प्रेम करते हैं तुम्हारी तरह, तुम भी तो एक फूल ही थे। जो हमेशा प्रेम करना जानते रहे।

आओ तुम्हें याद दिलाऊं क्या होता है प्रेम होना, फूल होना है, जिंदगी होना। तुम्हारे जज्बातों को एक बार फिर से इन्हीं अनगिनत फूलों में लिपटना सिखाना चाहती हूं। चाहती हूं जिंदा हो उठें फिर से वो जज्बात जो कभी इन ही फूलों में लिपटे रह गए थे। और सिकुड़ गए थे। उन्हीं को एक बार फिर से विस्तार दें। आओं ना सपनों का होना बहुत कुछ होना है। फूल के हर हिस्से में लिपटे दुनिया को विस्तार देना है। 

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