अंकिता रासुरी
पुस्तक का नाम- मनुष्यता का पक्ष
लेखक का नाम- विपिन शर्मा ‘अनहद’
पृष्ठ
संख्या- 151
पुस्तक
का मूल्य - 450
प्रकाशन- यश पब्लिकेशन 1/10753 सुभाष पार्क नवीन शहादरा
नई दिल्ली,
110032
दुनिया की कोई भी कला अगर मनुष्यता के पक्ष में
ना हो तो उसका होना निरर्थक है। युद्ध, प्रेम, संघर्ष जीवन की
इन्हीं भावनाओं के इर्द गिर्द घूमती है विपिन शर्मा की पुस्तक मनुष्यता का पक्ष।
मनुष्यता का पक्ष किताब इंसानी मुद्दों पर बात करती है और समस्याओं के खिलाफ
एक लेखकीय ताकत को अभिव्यक्त करती है। इस चिंता में वो तमाम लोग शामिल हैं जो समाज
में किसी भी तरह से उपेक्षित किए जाते रहे हैं। वैसे भी वर्तमान दौर में पूरी
दुनिया में अल्पसंख्यक को अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। दुनिया भर में
अतिरेकी विचारधारा की राजनीति गरमा रही है। स्त्रियों के तो हमेशा की ही तरह अपने
संघर्ष हैं। ऐसे दौर में लेखन की भी अपनी जिम्मेदारी होती ही है। असल मायनों में
लेखक उसी को माना जाएगा जो ऐसे में आमजन के पक्ष में खड़ा हो।
‘मनुष्यता के संकट के बीच कविता’ में अनहद ने भवानी प्रसाद मिश्र, लीलाधर जगूड़ी,
राजेश जोशी, विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं के जरिए लेखक और उनकी समाज के प्रति
जिम्मेदारी को समझने की कोशिश की है तथा इंसानी हक के लिए रचनाकारों के संघर्ष को
समझाया है।
इसके अलावा
सरहद के पार रचना संसार में दुनिया में मौजूद बेहतरीन लेखकों पाब्लो नेरूदा, ग्राबिएल गार्सिया मार्केंज, विस्सावा शिंम्बोर्स्का, गुंटर ग्रास, लैजलो क्रैसना होर्केई, खालिद हुसैनी, अहमद फराज और परवीन शाकिर को लिया है।
समावेश में नृत्य की दुनिया से अमेरिकी नृत्यांगना
इजाडोरा डंकन पर लिखा है जो कि अपनी अलग ही नृत्य शैली के लिए जानी जाती हैं। इसके
अलावा इस खंड में अमृता शेरगिल की चित्रकारी और विभाजन
पर आधारित फिल्म क्या दिल्ली क्या लाहौर पर लिखा है।इस तरह से पुस्तक में बहुत सी कला विधाओं को शामिल करने की कोशिश की
गई है।
पूरे साहित्य की बात की जाए तो कविताओं की एक
अलग दुनिया होती है एक लाइन में भी किसी भी बड़े से बड़े मुद्दे को समेटा जा सकता
है।अनहद भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं को युद्ध और शांति के खिलाफ उनका
मोर्चा मानते हैं और इनकी कविताओं को फैद नाजिम हिकमत, गुंटर ग्रास, अहदम फैज और
नेरुदा की कविताओं से जोड़कर देखते हैं। जो तमाम बर्बरताओं के खिलाफ रही है।
लीलाधर जगूड़ी की कविताओं में लेखक बाजारवाद और हिंसा के प्रति चिंताओं को देखते हैं। इसके अलावा लीलाधर जगूड़ी
को सस्ती लोकप्रियता से दूर एक गंभीर कवि के रूप में देखा गया है। तो वहीं राजेश
जोशी की कविताएं लेखक को उम्मीदों से भरी नजर आती है और उनकी कविताओं में स्वपनदर्शी
दृष्टकोण और उम्मीदों से भरा हुआ पाते हैं। जिनमें
समाज की तमाम चिंताओं के साथ, इसी समाज में
उम्मीद भी नजर आती हैं।
विनोद कुमार शुक्ल को सत्ता केंद्रों से दूरी बनाए रखने वाले कवि के
रूप में देखते हैं। इनकी चिंता में गरीब और आम आदमी बना रहता है। पुस्तक में शुक्ल
की ‘सब कुछ बचा रहेगा’ कविता संग्रह से कविताएं ली गई हैं। लेखक ने इनकी कविताओं को
निम्न मध्यमवर्गीय लोगों के कष्टों का कोलाज कहा है। लेखक ने वीरेन डंगवाल की
कविताओं में पाया कि वे बहुत बड़ी बड़ी चीजों पर लिखने के बजाय छोटी-छोटी चीजों पर
बड़ी बात कह जाते हैं जैसे पोदीना, नीबूं, खपरैल आदि। हाशिमपुरा, मेरठ,
मुजफ्फरनगर, दादरी जैसी सांप्रदायिक घटनाओं पर भी लिखते रहे हैं।
इसी खंड में लेखक ने भीष्म साहनी को भी शामिल किया है। भीष्म साहनी के
उपन्यास और कविताओं पर बात की है। भारत
विभाजन दुनिया की सबसे बड़ी मानव त्रासदियों में से एक रही है। ऐसे में अनहद भीष्म
साहनी को याद करते हैं। इनका
अधिकांश लेखन भारत विभाजन की
त्रासदियों पर रहा है।
सरहद के पार रचना संसार में अनहद ने पाब्लो नेरूदा, गाब्रिएल गार्सिया मार्केज, विस्वावा शिंबोर्स्का, गुंटर
ग्रास, लैजना क्रैसना होर्केई, खालिद हुसैनी, अहमद, फराज और परवीन शाकिर को लिया
है।
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से लेखक ने दो खास शायर परवीन शाकिर और अहमद
फराज को लिया है। फराज एकनिष्ठ प्रेम की बात करते हैं। इनके लेखन में प्रेम का
विछोह और दर्द भी शामिल है। इन्होंने फौजी शासन के खिलाफ लिखा तो इन्हें निर्वासन
भी भोगना पड़ा। लेखक कहते हैं कि फराज रूमानियत के कवि से धीरे-धीरे प्रतिरोध के
कवि के रूप में तब्दील हो जाते हैं।
वहीं परवीन शाकिर को भी प्रेम में विछोह की कवयित्री के तौर पर जानी
जाती हैं। लेखक ने इनके लेखन को प्रेम में डूबी सत्री का रोजनामचना माना है। पड़ोसी
मुल्क के इन शायरों को लेना काफी अहम माना जा सकता है ऐसे समय में जब पाकिस्तान का
लगातार विरोध किया जा रहा है और उनके कलाकारों का भी। और ये कलाकार तो अक्सर अपने
मुल्क में भी विरोध का शिकार होते रहे हैं।
पाब्लो नेरुदा दुनिया में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले कवियों में से हैं।
वे एक साथ प्रेम के कवि और एक क्रांतिकारी के तौर पर जाने जाते हैं। “बीस प्रेम कविताएं और हताशा का एक गीत” कविता संग्रह काफी प्रसिद्ध है। नेरूदा चिली में
जनता के कवि के रूप में जाने जात रहे हैं। पुस्तक में लेखक ने ना सिर्फ नेरुदा की
कविताओं पर बात की है बल्कि उनके क्रांतिकारी जीवन संघर्षों का भी जिक्र किया है। नेरुदा
की मौत पर भी लोगों द्वारा सवाल उठाए जाते रहे और उनकी मौत को लेकर सरकार शक के
घेरे में बनी रही।
ग्राबिएल गार्सिया मार्केज ने एकांत के सौ वर्ष जैसी वैश्विक स्तरीय कृति लिखी।
लेखक को जादुई यथार्थवादी लेखक कहा जाता है। जो लैटिन अमेरिकी जीवन
मान्यताओं और हकीकतों को उसी रूप में देखते हैं जैसा कि वे हैं या वहाँ के लोग मानते
हैं। मार्केज़ के रचना संसार पर उनकी दादी के किस्से कहानियों का असर है। लेखक
मार्केज की तुलना मुक्तिबोध कबीर और विजयदान देथा से करते हैं।
नोबल विजेता विस्सावा शिंबोर्स्का को लेखक प्रेम और प्रतिरोध की
कवयित्री के रूप में देखते हैं। लेखक के मुताबिक विस्सावा राजनैतिक लेखन तो करती
हैं लेकिन थोड़ा नर्म रुख लिए हुए। जैसा कि उन पर आरोप लगाया जाता है वे गैर-राजनैतिक
लेखन करती हैं यह गलत है। लेखक उनके स्वभाव के बारे में कहते हैं कि वो एकांतप्रिय
भले ही हैं लेकिन लेखन में बहुत मुखर हैं।
लेख कहतै हैं कि गुंटर ग्रास एक प्रतिरोधी लेखक हैं समझौतावादी वे कभी नहीं रहे। उन्होंने नाजीवाद–फासीवाद जैसा
प्रवतियों का हमेशा विरोध किया। द टिन ड्रम गुंटर ग्रास की नाजीवाद के खिलाफ किताब
है। उन्हें ब्लैक कॉमेडी का रचनाकार माना जाता है। अनहद गुंटर ग्रास की रचनाओं के
साथ-साथ उनके जीवन अनुभवों को भी बताते हैं।
हंगरी के लैजलो क्रैसना होर्केई 2015 के मैन बुकर पुरस्कार विजेता लेखक हैं। यह पुरस्कार
उन्हें सेटेटैंगो (1985) उपन्यास के लिए मिला। उनका लेखक बनने का कोई शौक या सपना
नहीं था। एक अनजान व्यक्ति से हुई मुलाकात उन्हें लिखने के लिए विवश कर देती है।
इस घटना से लेखक बनने की प्रक्रिया को भी समझा जा सकता है।
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों बर्लिन, न्यूयॉर्क जापान, चीन में रहने के
बाद भी लेखक अपने देश के दुख, तकलीफों से जुड़े नजर आते हैं। हंगरी ने दोनों विश्व
युद्धों में बहुत नुकसान झेला है। लगातार गरीबी झेलता रहा और सपने देखता रहा। अनहद
कहते हैं कि लैजलो को हंगरी की परिस्थितियों ने लेखक बनाया।
अफगानिस्तान से लेखक ने खालिद हुसैनी के उपन्यास काइट नगर को लिया है
जो अफगानिस्तान के बद्तर होते हालातों की दास्तान है। काबुल शहर में जन्मे खालिद हुसैनी 1980 में अमेरिका चले
गए थे। तालिबानी कब्जे से पहले और बाद वाले अफगानिस्तान की जिंदगी इसमें कैद है।
अनहद इस पुस्तक को आमिर और हसन की दोस्ती को देखते हैं जो उनके अब्बुओं के माध्यम
से होती है। हसन आखिर में लेखक बन जाता है। पश्तून का हजारा लोगों पर अत्याचार,
रूसी सेनाओं के कब्जे के बाद भी बुरी स्थिति, स्त्री को टारगेट करने की मानसिकता।
आसिफ उपन्यास के अंत में तालिबानी बन जाता
है जो बचपन में हसन और आमिर को परेशान करता था। आगा साहब और आमिर इलीट जीवन को
छोड़कर अमेरिका में मामूली जीवन जीना। आमिर का अफगानिस्तान वापस आना हसन के बेट
सोहराब को लेने के लिए, और बद्तर हालातों से सामना जो कि एक बड़ा परिवर्तन था अफगानिस्तान
के जीवन में। अनहद लेखक की की तारीफ करते
हैं इस उपन्यास के लिए लेकिन हुसैनी के अमेरिका के प्रति नर्म रुख पर भी सवाल
उठाते हैं जबकि दुनिया में आतंकवाद को कायम करने में अमेरिका अपना खेल जारी रखता
है। वे अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवाद को पाकिस्तान और अमेरिका द्वारा प्रयोजित
बताते हैं और तालिबानी आतंकवाद को इंसानियत पर संकट।
समावेश खंड में इजाडोरा डंकन, अमृता शेरगिल औऱ क्या दिल्ली क्या लाहौर
पर नजर लिखा गया है।एक संघर्षशील, अद्भुत नृत्यांगना और उन्मुक्त प्रेम करने वाली स्त्री
इजाडोरा की जिंदगी का जिक्र अगर इस पुस्तक में ना होता तो कला की दुनिया पर चर्चा
कुछ अधूरी रह जाती। इजाडोरा ने अपने जीवन अनुभवों को अपनी आत्मकथा ‘माई लाइफ’ में लिखा है। इजाडोरा
ने समाज के बने बनाए रास्तों को नहीं चुना। उसने अपनी अलग नृत्य शैली विकसित की।
बैले नृत्य के दौर में उसने अपना एक नया अंदाज गढ़ा। प्रेम के मामले में भी
इजाडोरा परंपरागत प्रेम को नकारकर अलग रास्ता बनाया।
पुरुष कलाकारों का संघर्ष तो बहुत दिखता है साहित्य में लेकिन एक
महिला कलाकार के अपने अलग संगर्ष होते हैं अनहद इस लेख में इसको बेहद डूबकर लिखते
हैं।
महिला कलाकार में दूसरा नाम अमृता शेरगिल का है जिसे लेखक ने अपनी पुस्तक में
लिया है। भारतीय चित्रकला में अमृता शेरगिल एक ऐसा नाम है जिसके अपने अलग ही मायने
हैं, खासकर महिला चित्रकार के तौर पर। शेरगिल के पिता एक सिक्ख थे जबकि माँ हंगरी
की थी। अमृता ने हंगरी के साथ-साथ भारत में जीवन का कुछ समय बिताया। कुछ समय पेरिस
में भी रही जहां चित्रकला का प्रशिक्षण
लिया। अमृता की चित्रकला की ताकत भारतीय चित्रकला है। अमृता ने पहाड़ी
और ग्रामीण स्त्रियों के जीवन के जीवन को प्रमुखता से अपनी कूचियों से रंगा है।
अमृता की बेहद कम उम्र में मौत हो गई।
विभाजन का असर अभी भी भारत-पाकिस्तान दोनों मुल्कों के रिश्तों पर
देखा जा सकता है। दोनों देश स्थायी तौर पर एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं। क्या
दिल्ली क्या लाहौर फिल्म इसी को बेहद संजीदा तरीके से पर्दे पर दिखाती है। अनहद इस
फिल्म को गर्म हवा और तमस जैसी संजीदा फिल्मों की कड़ी के तौर पर देखते हैं और इसे
राजनैतिक संदेश वाली फिल्म के तौर पर देखते हैं। फिल्म का अधिकाश हिस्सा दो
फौजियों के संवाद पर टिका हुआ है। राजनैतिक संदेश के मायने में लेखक इस फिल्म को
भारत विभाजन पर बनी अन्य फिल्मों से अलग मानते हैं। फिल्म में जिन्ना, गांधी का
जिक्र का भी जिक्र है और विभाजन का लोगों के जीवन पर पड़ने वाला स्थाई असर। भारत
से पाकिस्तान गए लोगों को मुजाहिर कहा जाता है। लेखक दोनों चरित्रों में
नॉस्टेलेजिया का भाव पाते हैं। रहमत अली दिल्ली को और समर्थ शास्त्री लाहौर को याद
करते हैं बातचीत में। इस फिल्म की तुलना विश्व प्रसिद्ध फिल्म शिंडलर्स लिस्ट और
मैन्स लैंड से करते हैं लेखक। साथ ही पिंजर, ट्रेन टू पाकिस्तान, खामोश पानी जैसी
फिल्मों से भी इसकी तुलना करते हैं।
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